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लबों से चूम लो आंखो से थाम लो मुझको
तुम्हारी कोख से जनमू तो पनाह मिले ..
मैं आरज़ू की तपिश में पिघल रही थी कहीं
तुम्हारे जिस्म से होकर निकल रही थी कहीं
बड़े हसीन थे जो राह में गुनाह मिले
तुम्ही से जन्मूँ तो शायद …..
क्या खूब लिखा है…दोस्तों….जरा इन लफ़्ज़ों के मायने गहराई से समझें तो पता चलता है कि कितनी बड़ी बात कह दी गई है…लाजबाब….इसे लिखा है गुलज़ार ने…..गुलजार,यानि मुकम्मल शायरी की एक मुकम्मल तस्वीर….आज जमाना बदल गया…..संगीत की ताल बदल गई, मगर कुछ नहीं बदला तो वो एक हैं गुलजार की शायरी…..दो पीढि़यों पहले जो नजाकत और नफासत उनके शब्दों में थी, अब वो और बढ़ गई है…..उनके अल्फाजों की अदाकारी पहले से ज्यादा शानदार हो गई है…….शब्दों को इतनी रंगीनियत, ग़ज़लों को इतनी रूमानियत देने वाले और झक सफेद लिबास पहनने वाले इस शख्स गुलज़ार का आज ७६ वाँ जन्मदिन है….मैं गुलज़ार साहब को जन्मदिन पर दिली मुबारक बाद देना हूँ… दुआ करता हूँ की इश्वर उन्हें लम्बी उम्र दराज़ करे…और खुशिओं की बारिश उनके आंगन में हर पल होती रहे….और जिस तरह उनकी कलम से निकले अल्फाजों ने जाने कितनों को दीवाना बना रखा है…ये सिलसिला हमेशा चलता रहे….और हम कहते रहे..
आप की आँखों में कुछ महके हुए से राज़ हैं
आपसे भी खूबसूरत आपके अंदाज़ हैं
गुलज़ार का जन्म पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब के झेलम जिले के दीना गांव में 18 अगस्त 1936 को हुआ…घर वालों ने नाम रखा…संपूर्ण सिंह कालरा… शायरी, साहित्य और कविता से जुडाव बचपन से ही जुड़ गया था,बचपन के दिनों से ही गुलजार अंताक्षरी के कार्यRमों में भी हिस्सा लेते थे और उन्हें संगीत में भी गहरी रूचि थी, पंडित रवि शंकर और अली अकबर खान जैसे उस्तादों को सुनने का मौका वो कभी नही छोड़ते थे…..गुलज़ार और उनके परिवार ने भी भारत -पाकिस्तान बँटवारे का दर्द बहुत करीब से महसूस किया, जो बाद में उनकी कविताओं में बहुत शिद्दत के साथ उभर कर आया. एक तरफ़ जहाँ उनका परिवार अमृतसर आकर बस गया, इसके बाद अपने सपनों को नया रूप देने के लिए गुलजार मुंबई आ गए लेकिन सपनों की नगरी में उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना प़डा….पेट पालने के लिए..वरली के एक गेरेज में, बतौर मेकेनिक वो काम करने लगे और खाली वक़्त में नज्मे और कवितायेँ लिखते..और फिर प्रोग्रेसिव रायर्टस एसोसिएशन से जुड गए….जिसकी वजह से कुछ लोगों से पहचान बनी और उन्हें निर्देशक विमल राय के सहायक के रूप में काम करने का मौका मिल गया… विमल राय ने अपने इस सहायक के भीतर एक ऎसे शायर को देखा जो रूहानी और रोमानी शब्दों से इस तरह खेलता था …..जैसे बच्चे खिलौनों से खेलते हैं…….बिमल राय ने गुलजार को अपनी क्लासिक फिल्म बंदिनी के लिए गीत लिखने का काम दिया…औए गुलज़ार ने पहला गीत लिखा… मेरा गोरा अंग लेई ले..मोहे श्याम रंग देइदे…लेकिन बंदनी को रिलीज होने में वक़्त लग गया….जब तक बंदिनी रिलीज हुई उससे पहले बिमल राय कि फिल्म काबुलीवाला रिलीज हो गई….इस फिल्म में भी गुलज़ार का लिखा एक गीत था…..काबुलीवाला के गीतों ने गुलज़ार को पहचान दी और जब बंदिनी रिलीज हुई तो उनके गीत ने फिल्म को कामयाब करने में एक अहम् किरदार निभाया…उसके बाद शुरू हुआ गुलज़ार के कैरियर का दूसरा पहलू..फिल्म राइटिंग…उन्हें ये मौका दिया सुबोध मुखर्जी ने और फिल्म का नाम था शागिर्द ….उसके बाद एक के बाद एक लगभग ४० फिल्मे लिखी…लेखन का ये सफार रवानी पर था कि गुलज़ार ने निर्देशन में भी भाग्य आज़माना शुरू कर दिया और पहली फिल्म बने “मेरे अपने”..और आपली ही फिल्म से गुलज़ार स्टार निर्देशक बन गए…..और ना सिर्फ दर्शको ने बल्कि सिनेमा भी गुनगुना उठा…
“तुम आ गए हो तो नूर आ गया है”
गुलज़ार ने जीतेन्द्र, विनोद खन्ना, हेमा मालिनी, डिम्पल कपाडिया जैसे व्यवसायिक सिनेमा के अभिनेताओं को उनके जीवन के बहतरीन किरदार जीना का मौका दिया, गुलज़ार की फिल्मों की बदौलत इन कलाकारों की असली प्रतिभा जग जाहिर हुई…फिल्म अभिनेत्री राखी के साथ रूमानियत के रिश्ते में बांध कर सात फेरे लिए….और ना सिर्फ बड़े पर्दे तक ही खुद को बांधे रखा बल्कि छोटे पर्दे पर भी अपनी प्रतिभा कायम किया और गलिप जैसे शायर की ज़िन्दगी से लोगों को रु-बरु कराया…तो चड्डी पहन के फूल खिला है लिख कर..बच्चों के जुबान पर छा गए…लोगों को ताज्जुब में दाल दिया… गुलजार की सबसे अहम खासियत ये भी है कि उन्होंने बदलते वक्त के साथ खूद को बखूबी ढाल लिया…. न जाने कितनी हस्तियां बदलते वक्त के साथ सामंजस्य न बना पाने की वजह से भूला दी गई,…… लेकिन गुलजार साहब आज भी सिनेमा की श्रेष्ठ शख्सियतों में गिने जाते हैं, तो सिर्फ इसीलिए कि उन्होंने बदलते वक्त के साथ बखूबी तालमेल बिठा लिया….
आज सिनेमा को करीब से जानने वाली एक पूरी पीढ़ी गुलजार साहब की प्रतिभा की कायल है. इनमें सिर्फ सिनेमाप्रेमी ही नहीं बॉलीवुड की कई शख्सियतें भी शामिल है, जो गुलजार को अपना गुरू मानती हैं. ….और जो अपने काम में कामयाबी के लिए आज भी गुलजार साहब से प्रेरणा लेती है…छिहत्तर साल की उम्र में भी गुलजार साहब किसी युवा की तरह नजर आते हैं….वही जोशो खरोश आज भी कायम है जो बंदिनी के वक़्त था… गुलज़ार को अब तक ५ राष्ट्रीय पुरस्कार २० फिल्म फेयर अवार्ड, पदमभूषण का सम्मान और आस्कर अवार्ड हासिल हो चुका है…और ये दुआ है की ये सफ़र चलता ही रहे….ये कहते हुए
“मुसाफिर हूँ यारों….”
गुलजार एक ऐसा नाम, जो लफ्ज़ को बुनते हैं, तो दिल की तह तक पहुंच जाते है… गुलजार लफ्ज़ को हांकते है और उनके इशारे पर लफ्ज चल पड़ते हैं.. यहां तक कि गुमनाम और अनसुने शब्दों को जब वो छूते हैं.. तो वो भी बोलने लगते हैं..जब हम गुलजार साहब के गाने सुनते हैं तो .एहसास होता है की यह तो हमारे आस पास के लफ्ज़ हैं पर अक्सर कई गीतों में गुलज़ार साब ने ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जो श्रोता को चकित कर देते हैं.जैसे की उन्होने कोई जाल बुना हो और हम उसमें बहुत आसानी से फँस जाते हैं….गुलज़ार साब ने अक्सर ही ऐसा किया है.इसे हम गुलज़ार का तिलिस्म भी कह सकते हैं.वाकई गुलजार साहब बेमिशाल शख्शियत हैं .. जो .. हाथों पर धूप मला करते है.. .हवाओं पर पैगाम लिखा करते हैं….मैं समझाता हूँ गुलज़ार बस एक कवि हैं और कुछ नही, एक हरफनमौला कवि, जो फिल्में भी लिखता है, निर्देशन भी करता है, और गीत भी रचता है, मगर वो जो भी करता है सब कुछ एक कविता सा एहसास देता है. फ़िल्म इंडस्ट्री में केवल कुछ ही ऐसे फनकार हैं, जिनकी हर अभिव्यक्ति संवेदनाओं को इतनी गहराई से छूने की कुव्वत रखती है, और गुलज़ार उन चुनिन्दा नामों में से एक हैं, जो अपना क्लास, अपना स्तर कभी गिरने नही देते…. … अब मैं अपनी बात को यहीं समेटते हुए गुलजार साहब के करोड़ों प्रशंसकों के साथ हम भी यही दुआ करेंगे कि आने वाले कई सालों तक उनकी कलम की धार इसी तरह हमारे दिलों को लुभाती रहे….और वो हमारे लिए सपने चुनते रहे…
“सपने..सुरीले सपने…सतरंगी सपने….”
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