जावेदनामा
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मैं कृत्य संकल्प हू,
अपनी माँ की उस
छ्टपटाहत को
वापस करने के लिए.
जो –
गर्भ से बाहर आने तक
उसने झेली है.
ताकि वो –
सुख के अपार क्षणों मे,
अपनी आँखो से आसुओ के दो बूँद
मोती मे ढाल कर गर्व से –
जग को दे सके
और कह सके –
मैं “जावेद” जननी हूँ.
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